यद्यपि भारत का सुनहरा भविष्य
तो तुमने देखा है
लेकिन यथार्थ से परे कभी इस तस्वीर
को देखा है
मैंने सड़कों के किनारे भारत
का भविष्य देखा है
कंपकपाती सरदी में नंगे बदन ठिठुरते
देखा है
पेट पालने की जुगत में भीख मांगते
देखा है
भारत के भविष्य को भूख से दम तोड़ते
देखा है
चाय की होटल पर उसको बरतन धोते
देखा है
भारत के भविष्य का यूं अपमान होते
देखा है
मैंने भारत के भविष्य को जूते माँजते
देखा है
कचरे की टोकरी से उसको झूठन खाते
देखा है
स्कूलों के बैग टकटकी लगा देखते
देखा है
और फिर खुद की हालत पे यूं मन मसोसते
देखा है
फटे हुए कपड़ों में उसको बदन छिपाते
देखा है
भारत का भविष्य दर-दर ठोकर खाते
देखा है
सड़क किनारे बिन चद्दर के रात बिताते
देखा है
और कभी गाड़ी की टक्कर से बेमौत मरते
देखा है
यद्यपि भारत का सुनहरा भविष्य
तो तुमने देखा है
लेकिन यथार्थ से परे कभी इस तस्वीर
को देखा है
Saturday, 23 August 2014
भारत का भविष्य ।
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